India In Chaos

- पुस्तक के विषय में


यह पुस्तक भारत के संविधान की दुर्लभ व्याख्या है। यह भारत की समस्याओं और उनके सम्पूर्ण समाधान के समग्र निदान का प्रयास करती है। यह ऐसी सरकारें स्थापित करके देष में परिवर्तन लाने का अद्धितीय अवसर प्रदान करती है जो मानवीय कष्टों के प्रति संवेदनषील हों और संविधान के ‘मूल उद्देष्यों’ को पूरा करने में सक्षम हों।

पहले कभी इस तरह की किताब न तो लिखी गई है और न ही संविधान की व्याख्या इतने विवेकपूर्ण ढंग से की गई है - जिसमें न्यायपािलका की कार्यावधियों और विषेषाधिकार शक्तियों की सम्पूर्ण व्याख्या की गई है।

भारत की समृद्धि के लिए इस पुस्तक को पढ़ना इसलिए आवष्यक हो जाता है क्योंकि यह एक उत्कृष्ट अनुसंधान रचना है। जिन गणमान्य लोगों ने इस पुस्तक की समीक्षा की है, उन्होने भी इस पुस्तक को सभी लोगों द्वारा पढ़े जाने की संस्तुति की है।

मेरी पुस्तक का भाग 3 के शासनतंत्र की मदद से भारत को असीमित प्रगति हासिल करने और दुनिया के सर्वाधिक ताकतवर व समृद्ध राष्ट्रों में सम्मिलित करने के लिए दिशा-निर्देश व तरीके प्रस्तुत करता है। मेरे दर्षन के सिद्धांत सोच स्वतः ही जाति, पंथ और धर्म आदि के आधार पर लोगों के वर्गीकरण और सभी प्रकार के वर्ग संघर्षों को मिटा देंगे। इस प्रकार सभी तरह के कोटे और आरक्षण धीरे-धीरे समाप्त हो जाएंगे। जिन प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने मेरी पुस्तक की समीक्षा की है, वे भी मेरे दर्षन से सहमत हैं।

मिषन

‘अव्यवस्था के भंवर में भारत‘ केंद्र और राज्यों में ज़िम्मेदार और जवाबदेह शासनतंत्र स्थापित करने का एक मिषन है। ऐसी सरकारें जो मानव कष्टों के प्रति संवेदनषील हों और ‘आर्थिक स्वतंत्रता, समान स्तर व अवसर, आज़ादी, गरिमा और भाईचारे’ के संदर्भों में संविधान के मूल उदेष्यों को पूरा करती हों। इससे राष्ट्र का तेज़ी से हो रहा पतन रूकेगा और देष के लोगों को निरंतर चली आ रही पीड़ाओं और जीवन के कष्टों से छुटकारा मिलेगा और वे वास्तविक स्वतंत्रता तथा गरिमा को अनुभव कर सकेंगे।

मैं न्यायपालिका से कुछ आवष्यक चुनाव सुधार करने का आग्रह करता हूँ जो निम्नलिखित हैं ताकि ऐसी सरकारों की स्थापना हो सके जो अपने पीड़ित नागरिकों की सुरक्षा कर सकें;

- मुफ्त सुविधायें रोकेंः ताकि सुयोग्य नेताओं को चुनने में मदद मिल सके और राज्यों और केद्र के चुनावों के दौरान विकास की कीमत पर की जाने वाली गैर-उत्पादक मुफ्तखोरी और असंगत वादों पर खर्च होने वाली राष्ट्र की सम्पत्ति का दुरूपयोग रोका जा सके।

- एक दूसरे पर लांछन लगाना और निंदा करना रोका जाएः क्योंकि इससे देष के लोगों में घृणा की भावनाएं उत्पन्न होती हैं।

- राजनीति का अपराधीकरण रोका जायेः क्योंकि किसी भी दृष्टि से अपराधीकरण लोगों का कल्याण नहीं कर सकता (भारत के संविधान के अनुच्छेद 13 का दुरूपयोग)।

- विद्धान न्यायपालिका को ‘तीसरी आँख’ की भूमिका निभानी होेगीः ताकि हमारे संविधान की गरिमा और सम्मान बना रह सके।

सुधारों का उद्देष्य

- उपरोक्त सुधार हमारे प्रतिष्ठित संविधान के प्रति हमारे राजनीतिक दलों और और उम्मीदवारों की निष्ठा फिर से आष्वस्त करने और इसके मूल उद्देष्यो को पूरा करने और उनकी प्रतिबद्धता के लिए महत्वपूर्ण हैं।

- सुधार सुयोग्य संरक्षकों को चुनने, राष्ट्र के निर्माण में सक्षम होने और लोगों को उनके कष्टों से बाहर निकालने तथा उन्हें गरिमापूर्ण तरीके से जीवन जीने में मदद करने का एक तंत्र हैं।

- सुधार मतों के लिए लालच देने के रूप में भारत की सम्पत्ति को दांव पर लगाये जाने से भी उसे सुरक्षित करेंगे। देष की दौलत विकास के लिए तथा रोजगार के लिए आजीविका के अवसर उपलब्ध कराने के लिए है। ठोस विकास के अभाव में, भारत की बेरोजगारी समय के साथ-साथ भयावह होती जा रही है।

न्यायविद् एवं भारत के पूर्व महाअधिवक्ता, माननीय सोली जहांगीर सोराबजी कहते हैं, ‘‘किसी भी क्रियाशील प्रजातंत्र में निडर और स्वतंत्र न्यायपालिका अनिवार्य है। श्री अग्रवाल की किताब व्यापक अनुसंधान के बाद लिखी गई है और यह न्यायालय से यह अपेक्षा रखती है कि वह हमारी जनता के निर्धन व उपेक्षित वर्गों के मूल अधिकारों की रक्षा के लिए कार्यपालिका द्वारा सत्ता के व्यापक दुरुपयोग को रोकने के लिए न्यायालय का हस्तक्षेप चाहती है।’’

भारत के लोग अपने खराब स्थितियों को ठीक करने और संविधान की गरिमा को बनाये रखने के लिए विद्धान न्यायपालिका से आस लगाये बैठे हैं, ताकि वे सही तरीके से सुरक्षित रह सकें।

संविधान, न्यायपालिका की जननी है और भारत को बचाने के लिए इसकी अवहेलना को रोक कर तथा इसकी पवित्रता बनाये रखते हुए संविधान की गरिमा और सम्मान को बरकरार रखना, न्यायपालिका का त्वरित उत्तरदायित्व है।‘‘

इस पुस्तक में क्या है?

1.पुस्तक का भाग 1 आपको बताता है कि हम अपनी आज़ादी के 72 वर्षों में किस प्रकार असफल हुए हैं?

2.पुस्तक का भाग 2 आपको भारत के संविधान के निर्माध और हमारी असफलता के कारणों की जानकारी देता है।

3.किताब का भाग 3 राष्ट्र की अबाध प्रगति और हमारे नागरिकों की प्रसन्नता को आगे बढ़ाने के लिए अनूठी और समग्र और भावी योजनाओं की जानकारी देता है।

इस पुस्तक के बारे में गणमान्य व्यक्तियों के क्या विचार हैं? - जस्टिस श्री एम.एन. वेेंकटचलैया, भारत के माननीय पूर्व मुख्य न्यायधीष

यह पुस्तक एक जानकारीपूर्ण लेखा-जोखा है और देश और इसकी जनता की समृद्धि में आगे बढ़ने के लेखक के इरादे को प्रस्तुत करती है।
न्यायधीश के.जी. बालाकृष्णन, भारत के पूर्व मुख्य न्यायधीश

यह किताब कानून के छात्र/छात्राओं सहित सभी विद्यार्थियों द्वारा पढ़ी जानी चाहिए, जिन्हें हर अध्याय में उपयोगी जानकारी मिलेगी, जिससे वे भारत के परिपक्व नागरिक बन सकेंगे।
माननीय श्री राम जेठमलानी, न्यायविद्

‘‘इस पुस्तक का विभिन्न भाषाओं मंे अनुवाद कराया जाना चाहिए ताकि लोगों को इसका लाभ मिल सके।’’
प्रो. डाॅ. महेन्द्र पाल सिंह, कुलपति, सेंट्रल यूनिवर्सिटी आफ हरियाणा, एवं लाॅ प्रोफेसर

‘के.सी. अग्रवाल भावी भारत के वास्तुकार हैं’
- माननीय श्री रामजेठलानी, न्यायविद्

- श्री अग्रवाल, आपकी पुस्तक पढ़ने में दिलचस्पी जगाती है। मुझे इस बात की खुशी है कि आपने केवल मुद्दों को उठाया ही नहीं है बल्कि आपने उन समस्याओं का समाधान भी दिया है। मुझे विश्वास है कि यह पुस्तक उन विभिन्न मुद्दों का समाधान उपलब्ध कराने के लिए मार्गदर्शन करेगी जिनसे हमारा देश जूझ रहा है।“
- माननीय न्यायधीश, श्री चल्ला कोडांडा राम
उच्च न्यायालय, हैदराबाद

माननीय श्री के.के. वेणुगोपाल, उच्चतम न्यायालय, भारत के महाअधिवक्ता के शब्दों में; ‘‘यह पुस्त्क राष्ट्र द्वारा सामना किए जाने वाले कष्टों का एक गहरा आत्मावलोकन है तथा यह समाधान देने का प्रयास करती है। मूल स्तर पर मैं इस बात से सहमत हू कि केंद्र एवं राज्य स्तर पर एक ज़िम्मेदार औा जवाबदेह शासनतंत्र की स्थापना की जानी चाहिए। लम्बे समय से मैं इस बात का आग्रह करता रहा हूँ कि उच्चतम न्यायालय को केवल अपीलीय न्यायालय की तरह काम करने की बजाय संवैधानिक न्यायालय के रूप में काम करना चाहिए जैसा कि संविधान के अंतर्गत निर्देषित है। इससे यह सुनिष्चित होगा कि संवैधानिक महत्व और व्याख्या के मामलों में समयबद्ध तरीके से निर्णय हो सकेगा।’’

(http://indiainchaos.com/testimonials.html)

योजनायें और दिषानिर्देष
इस पुस्तक का भाग 3 सिटी सेंटर स्थापित करने और देष को समृद्धि और प्रसन्न बनाने के लिए विस्तृत जानकारी देता है। यह उन संभावित योजनाओं और दिषानिर्देषों के बारे में भी बताता है जिनके माध्यम से इन्हें हासिल किया जा सकता है। ईमानदारी से क्रियांवित किये जाने पर ये सेंटर हमारे देष को विष्व के सर्वाधिक समृद्ध और शक्तिषाली देषों में शामिल कर सकते हैं। मेरे विचार और दर्षन स्वतः ही ‘‘‘जाति, पंथ और धर्म आदि के आधार पर लोगों के वर्गीकरण और सभी प्रकार के वर्ग संघर्षों का मिटा देंगे। इस प्रकार सभी तरह के कोटे और आरक्षण धीरे-धीरे समाप्त हो जाएंगे।‘‘

यह पुस्तक भारत की समृद्धि के लिए एक अद्धितीय अनुसंधान रचना है।

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